ग्रीन पटाखों पर दिल्ली वालों के लिए छूट क्यों चाहती हैं सीएम

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता चाहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट दिवाली के दौरान ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दे. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर जैसे प्रदूषित इलाकों में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है. कोर्ट ने कहा है कि वायु और ध्वनि प्रदूषण के कारण यह रोक जरूरी है. हालांकि अदालत ने ग्रीन पटाखों के उत्पादन की अनुमति दी हुई है. लेकिन दिल्ली-एनसीआर में इन पटाखों की बिक्री पर भी पूरी तरह रोक है.

इस मामले ने धर्म और पर्यावरण के मुद्दे पर एक बार फिर बहस शुरू कर दी है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अदालत के रुख को लेकर रेखा गुप्ता ने कहा है कि दिवाली देश का बड़ा सांस्कृतिक पर्व है. दिल्ली के कई लोगों की इस त्योहार से भावनाएं जुड़ी हैं. उनकी सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कड़े प्रयास कर रही है लेकिन दिल्ली सरकार चाहती है कि राज्य में ‘ग्रीन सर्टिफाइड' या ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल को अनुमति दी जाए.

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भारत में पटाखों का इस्तेमाल बहुत से त्योहारों और जश्न के मौकों पर किया जाता रहा है. ग्रीन पटाखे, पारंपरिक पटाखों का विकल्प होते हैं. इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने अपने राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के माध्यम से 2018 में विकसित किया था. इन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाया गया. इन पटाखों का उद्देश्य वायु और ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करना है ताकि लोग त्योहारों पर इन पटाखों का इस्तेमाल कर सके. लेकिन दिल्ली में ग्रीन पटाखों की बिक्री और इन्हें जलाने पर भी साल 2017 से पाबंदी है. इस पूर्ण प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने अब तक जारी रखा है.

ग्रीन पटाखे क्या होते हैं?

सीएसआईआर-नीरी की एक स्टडी के अनुसार ग्रीन पटाखे वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं. इसकी रासायनिक सामग्री में फर्क होता है. ग्रीन पटाखों में हानिकारक रसायनों जैसे बेरियम, नाइट्रेट, पोटैशियम क्लोरेट, सल्फर आदि का इस्तेमाल कम या बिल्कुल नहीं होता. जबकि पारंपरिक पटाखों में इन रसायनों के उपयोग के कारण ज्यादा वायु प्रदूषण होता है.

फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (उत्तर भारत) के अध्यक्ष राजीव जैन ने डीडब्ल्यू को बताया कि ग्रीन पटाखों को इस तरह से बनाया जाता है कि जब वे जलते हैं तो वे अधिक मात्रा में जलवाष्प (वॉटर वेपर) छोड़ते हैं. राजीव जैन बताते हैं, "जलवाष्प गैर-हानिकारक गैस होती है. ग्रीन पटाखों से निकलने वाला जलवाष्प हवा को साफ रखने में मदद करता है और प्रदूषण को घटाता है."

ग्रीन पटाखे मुख्य रूप से तीन तरह के हैं. ये पूरी तरह से प्रदूषण खत्म नहीं करते. बल्कि प्रदूषण कम कर सकते हैं. पहला है सुरक्षित जलवाष्प उत्सर्जक पटाखा या ‘स्वास'. यह जलने पर जलवाष्प छोड़ता है. जिससे धुआं कम उठता है. दूसरा, सुरक्षित थर्माइट पटाखा या ‘स्टार'. यह थर्माइट रिएक्शन पर आधारित है. तीसरा, सुरक्षित न्यूनतम एल्युमिनियम पटाखा या ‘सफल'. इसमें मैग्नीशियम जो जगह बहुत कम मात्रा में एल्युमिनियम का उपयोग होता है. तीनों तरह के पटाखों में बैरीयम नाइट्रेट का उपयोग नहीं होता. ये ध्वनि प्रदूषण को भी कम करते हैं. इन सभी को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से मंजूरी मिली हुई है.

ग्रीन पटाखों के लिए विकसित हो रही है नई तकनीक

अनुज गोयल छत्तीसगढ़ के नजदीक धमतरी में श्री गणेश फायरवर्क के मालिक हैं. उनकी कंपनी ग्रीन पटाखों का निर्माण करती है. ये कंपनी महिलाओं को पटाखे बनाने का प्रशिक्षण भी देती है. अनुज कई सालों से नई तकनीकों का उपयोग कर ग्रीन पटाखों का निर्माण कर रहे हैं. हाल ही में नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) ने पौधों पर आधारित एक विशेष तकनीक को विकसित किया है. इस नई तकनीक का इस्तेमाल ग्रीन पटाखों को बनाने के लिए किया जा रहा है. श्री गणेश फायरवर्क यह करने वाली पहली भारतीय उत्पादन कंपनी है.

अनुज डीडब्लू को बताते हैं कि उन्होंने एनबीआरआई के साथ एग्रीमेंट किया है. वह पहली बार हर्बल पौधों पर आधारित तकनीक का इस्तेमाल करेंगे. पारंपरिक पटाखों में नाइट्रेट, सल्फर, और ब्लैक पाउडर जैसी हानिकारक सामग्री मिली होती है. वो कहते हैं, "पटाखों से होने वाले प्रदूषण को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. जब हम किसी भी पटाखे में आग लगाते हैं, तो धुआं तो होता ही है. बस ग्रीन पटाखों का मकसद कम प्रदूषण करना होता है.”

अनुज डीडब्लू को बताते हैं, "हम ऐसे पटाखों का निर्माण करेंगे जिनसे कम धुआं निकलेगा. हमें मैजिक साउंड क्रैकर, चकरी, फ्लावर पॉट और हवा में फूटने वाले पटाखों के निर्माण की अनुमति मिली है. इन पटाखों में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक पारंपरिक तरीकों से काफी अलग है. इस नई तकनीक के कारण ना केवल धुएं में कमी आएगी, बल्कि पटाखों की आवाज़ का डेसीबल स्तर भी कम होगा. इसके अलावा, इनमें एक परफ्यूम जैसी सुगंध भी होगी जो प्रदूषण को सोखने वाले एब्सॉर्बेंट का काम करेगी. इस वजह से वातावरण में फैलने वाला प्रदूषण भी काफी हद तक घटेगा.” अनुज के मुताबिक शुरुआत में इन्हें बनाने की लागत पारंपरिक पटाखों से लगभग 15 फीसदी ज्यादा रही. वो इस दिवाली भी इस तकनीक से बने पटाखों का मास प्रोडक्शन नहीं कर पाएंगे. लेकिन आने वाले समय में उनका प्लान इनके उत्पादन को बढ़ाने का है.

क्या वाकई कम प्रदूषण करते हैं ग्रीन पटाखे?

सीएसआईआर ने इन ग्रीन पटाखों के उत्पादन और बिक्री के लिए लगभग 230 कंपनियों के साथ टाई-अप किया है. इनके निर्माण के लिए किसी फैक्ट्री में बदलाव की आवश्यकता नहीं होती. इन पटाखों को जलाने से वायु प्रदूषण में कम से कम 30 फीसदी की कमी आती है. शोर भी कम होता है.

सीएसआईआर के अनुसार ग्रीन पटाखे पीएम 10 और पीएम 2.5 के उत्सर्जन को 30-35 फीसदी तक कम करते हैं. साथ ही सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स को 35-40 फीसदी तक घटाते हैं. ये पटाखे 120 डेसीबल से कम ध्वनि उत्सर्जित करते हैं. पीएम 10 और पीएम 2.5 हवा में मौजूद सूक्ष्म कण होते हैं. इन्हें पार्टिकुलेट मैटर भी कहा जाता है. ये कण वायु प्रदूषण के मुख्य कारण होते हैं.

हालांकि एंवायरोकैटेलिस्ट के फाउंडर सुनील दहिया का कहना है कि अदालत ने वर्षों से पटाखों के जलाने पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं होता. वह कहते हैं, "दिवाली के दिन तो पटाखे जरूर जलाए जाते हैं. साथ ही दिवाली से एक दिन पहले और बाद वाले दिन भी लोग पटाखे जलाते हैं. इस दौरान प्रदूषण का स्तर सामान्य से 30-40 फीसदी तक बढ़ जाता है. दिवाली के त्योहार में पटाखों के कारण प्रदूषण बहुत अधिक हो जाता है. अस्पतालों में अस्थमा के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है. अगर दीवाली पराली जलाने के मौसम के साथ पड़ गई, तो यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है."

सुनील दहिया ये भी कहते हैं कि ‘ग्रीन' पटाखों में कुछ भी ‘ग्रीन' नहीं है. ये सिर्फ 30 फीसदी प्रदूषण कम करने में सक्षम हैं. अगर ग्रीन पटाखे बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे, तो लोग उन्हें अधिक मात्रा में खरीदेंगे और जलाएंगे. जिससे प्रदूषण कम होने की उम्मीद कमजोर पड़ जाएगी. सुनील कहते हैं, "दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है. पटाखों पर रोक लगाने से कुल प्रदूषण में केवल 5-6 फीसदी की कमी होती है. जो बहुत मायने नहीं रखती. दिल्ली में गाड़ियां, पावर प्लांट और इंडस्ट्री प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं.” सुनील दहिया इन सभी को लेकर नीतियां बनाने की मांग करते हैं.

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